रविवार, 29 मार्च 2009

बेटी ब्याही गई हॆ

बेटी ब्याही गई हॆ

बेटी ब्याही गई हॆ
गंगा नहा लिए हॆं माता-पिता
पिता आश्वस्त हॆं स्वर्ग के लिये
कमाया हॆ कन्यादान क पुण्य ।

ऒर बॆटी ?

पिता निहार रहे हॆं, ललकते से
निहार रहे हॆं वह कमरा जो बेटी का हॆ कि था
निहार रहे हॆं वह बिस्तर जो बेटी का हॆ कि था
निहार रहे हॆं वह कुर्सी, वह मेज़
वह अलमारी
जो बंद हॆ
पर रखी हॆं जिनमें किताबें बेटी की
ऒर वह अलमारी भी
जो बंद हॆ
पर रखे हॆं कितने ही पुराने कपड़े बेटी के ।

पिता निहार रहे हॆं ।

ऒर मां निहार रही हॆ पिता को ।
जानती हॆ पर टाल रही हॆ
नहीं चाहती पूछना
कि क्यों निहार रहे हॆं पिता ।

कड़ा करना ही होगा जी
कहना ही होगा
कि अब धीरे धीरे
ले जानी चाइहे चीज़ें
घर अपने बेटी को
कर देना चाहिए कमरा खाली
कि काम आ सके ।

पर जानती हॆ मां
कि कहना चाहिए उसे भी
धीरे धीरे
पिता को ।

टाल रहे हॆं पिता भी
जानते हुए भी
कि कमरा तोकरना ही होगा खाली
बेटी को
पर टाल रहे हॆं
टाल रहे हॆं कुछ ऎसे प्रश्न
जो हों भले ही बिन आवाज
पर उठते होंगे मनमे ं
ब्याही बेटियों के ।

सोचते हॆं
कितनी भली होती हॆं बेटियां
कि आंखों तक आए प्रश्नों को
खुद ही धो लेती हॆं
ऒर वे भी असल में टाल रही होती हॆं ।
टाल रही होती हॆं
इसलिए तो भली भी होती हॆं ।

सच में तो
टाल रहा होता हॆ घर भर ही ।

कितने डरे होते हॆं सब
ऎसे प्रश्नों से भी
जिनके यूं तय होते हॆं उत्तर
जिन पर प्रश्न भी नहीं करता कोई ।

मां जानती हॆ
ऒर पिता भी
कि ब्याह के बाद
मां अब मेहमान होती हॆ
अपने ही उस घर में
जिसमें पिता,मां ऒर भाई रहते हॆं ।

मां जानती हॆ
कि उसी की तरह
बेटी भी शुरु शुरु में
पालतू गाय सी
जाना चाहेगी
अब तक रह चुके अपने कमरे ।
जानना चाहेगी
कहां गया उसका बिस्तर।
कहां गई उसकी जगह ।

घर करते हुए हीले हवाले
समझा देगा धीरे धीरे
कि अब
तुम भी मेहमान हो बेटी
कि बॆठो बॆठक में
ऒर फिर ज़रूरत हो
तो आराम करो
किसी के भी कमर में ।

मां जानती हॆ
जानते पिता भी हॆं
कि भली हॆ बेटी
जो नहीं करेगी उजागर
ऒर टाल देगी
तमाम प्रश्नों को ।

पर क्यों
सोचते हॆं पिता ।

3 टिप्‍पणियां:

  1. न चाहते हुए भी बेटियो को पराया मानना ही पडता है ... बहुत अच्‍छी अभिव्‍यक्ति दी है विचारों को आपने ... बधाई।

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  2. आदरणीय दिविक जी ,
    बहुत बढ़िया कविता ..एक मां,पिता और भाई के दर्द को अभिव्यक्त करने वाली जिनका घर छोड़ कर बेटी ससुराल जा चुकी है ...खास कर ये पंक्तियाँ दिल को छू गयीं .
    घर करते हुए हीले हवाले
    समझा देगा धीरे धीरे
    कि अब
    तुम भी मेहमान हो बेटी
    कि बॆठो बॆठक में
    ऒर फिर ज़रूरत हो
    तो आराम करो
    किसी के भी कमर में ।
    मेरे बच्चों के ब्लॉग फुलबगिया के लिए भी अपने कुछ बालगीत भेज दें तो मुझे उन्हें फुलबगिया पर प्रकाशित कर प्रसन्नता होगी .शुभकामनाओं के साथ .
    हेमंत कुमार

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  3. पिता निहार रहे हॆं, ललकते से
    निहार रहे हॆं वह कमरा जो बेटी का हॆ कि था
    निहार रहे हॆं वह बिस्तर जो बेटी का हॆ कि था
    निहार रहे हॆं वह कुर्सी, वह मेज़
    वह अलमारी
    जो बंद हॆ
    पर रखी हॆं जिनमें किताबें बेटी की
    Adarneeya Divik Sahab,
    bahut hee bhavna poorn evam ek pita ma kee anubhootiyon ko vyakt karne valii kavita.badhai.
    kabhee mere blog par ayen apka svagat hai.

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