शनिवार, 11 अप्रैल 2009

विष्णु जी

नही रहे । मित्रों के महत्तवपूर्ण साहित्यकार मान्य आलोचकों के मात्र महत्त्वपूर्ण जीवनीकार मात्र थे /थे। उससे भी ज्यादा एक भले गांधीवादी व्यक्ति । मृत्यु हो गई तो अखबार वाले तो मान्य आलोचकों ऒर कवियों आदि से ही प्रतिक्रिया लेंगे न भले ही जीते जी उन्होंने उन्हें महत्त्वपूर्ण साहित्यकार न माना हो । टालू प्रतिक्र्याएं छाप कर निवृत हों लेंगे । वे क्यों पूछें राजकुमार सॆनी से, हरदयाल से, सविता चड्ढा से, श्याम विमल से, भारत भारद्वाज से ऒर कितने ही टी हाऊसियों तथा मोहसिंग पॆलेसियों से । ऒर विडम्बना यह हॆ कि मानी गयी महान कृति 'आवारा मसीहा" को महान लोगों ने साहित्य अकादमी पुरस्कार नहीं लेने दिया क्योंकि वह विष्णु प्रभाकर जॆसे दोयम दर्जे (?) के लेखक की रचना थी । हाहा कारियों को बता दूं कि उस समय स्वर्गीय रमेश गॊड़ जॆसे साहित्यकार बन्धुऒं की बदॊलत उन्हें पाब्लो नेरूदा पुरस्कार दिया गया था जिसका सृजन बन्धुऒं की सहयोगी राशि से किया गया था । ऒर ऎसे धरती घूम गयी थी । जिस अर्धनारीश्वर पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला हॆ रसियन सेंटर में आयजित उस पर केन्द्रित गोष्ठी में मान्य आलोचकों ने भाग लेना उचित नहीं समझा था । मतलब यह कि इस लेखक की मृत्यु पर फोके आंसू न बहाकर उनके साहित्य पर ठिकाने से विचार करने की आवश्यकता हॆ । वरना लोकप्रियता, प्रशंसकों ऒर भरे पूरे जीवन जीने का अभाव उनके पास नहीं हॆ । उन्होंने अपना स्थान अर्जित किया हॆ - कोई माने या न माने -त्रिलोचन की तरह । उल्लेखनीय हॆ कि जब त्रिलोचन जी लोकप्रिय ऒर बहुत बड़े लेखकीय समाज में प्रतिष्ठित हो चुके थे तो माने हुए आलोचकों ने उन्हें खोजा था । ऒर उनके पक्षधर होने के ऎतिहासिक दावे भी किये थे । यही नहीं उनके संदर्भ में मतलब के कितने ही लोगों को तिरिहित करने के उपक्रम भी हुऎ । खॆर विष्णु जी जॆसे संघर्षशील, अपनी शर्तों पर लिखते ऒर चलनेवाले, आलोचनाओं से बेपरवाह साहित्यकार का निधन प्रेरणादायी ही हो सकता हॆ। साहित्य का भरपूर भंडार भरनेवाले ऒर एक भरपूर जिन्दगी जी लेनेवाले साहित्यकार के प्रति हम आभारी हॆं ।

21 टिप्‍पणियां:

  1. priya ramesh ji
    aapkee bebbak tippanee ke liye aapko badhaee
    vishnu ji ne apane shareer ko AIIMS ko saunp kar hamare samay ke tathakathit mukhyadhara ke sahitykaroN ko tay karane waloN ko apana sudrih uttar diya hai. aap to ajante hi hain ki yeh sahityik vyavstha anek vishnu prabhakroN ko janm dene ke liye urvar hai
    janmejai

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  2. Priya ramesh Ji
    aapkee bebaak tippanii ke liye aapko sadhuvaad
    aapne aaj ke sahityik paridrishya par saarthak tippanee ki hai
    aap to jante hi hain ki tathakathi sahitiyk mukhyadhara ke vayavsthapkoN ki vyavstha anek Vishnu prabhakaroN ko janam dene ke liye pryapt urvar hai aur uske prati vishnu ji ne apana shareer AIIMS ko dekhkar apana virodh darz kar diya hai
    janmejai

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  3. माननीय दिविक रमेश जी। आपके विचार उम्‍मीद करता हूं क्रांति ला सकेंगे। एक सूत्रपात भी हो जाए स्‍व. विष्‍णु प्रभाकर जी की कृतियों को जन जन के मन तक पहुंचाने का, तो मैं समझूंगा कि आपको जज्‍बातों को स्‍वर मिल गया है। माननीय श्‍याम विमल जी से मिलकर विष्‍णु प्रभाकर जी के आत्‍मीय और प्रेरणादायक संस्‍मरणों और अनुभूतियों को अपने अपने स्‍तर पर सामने लाने की आवश्‍यकता है। आपका नुक्‍कड़ में स्‍वागत है। आपको नुक्‍कड़ से जुड़ने का आमंत्रण भेजा है और वे सब भी जिनका आपने उल्‍लेख किया है उनका भी नुक्‍कड़ में स्‍वागत है। वे अपने संस्‍मरण, अपनी बात, अपने बेबाक विचार मुझे ई मेल भी कर सकते हैं और चाहें तो सीधे नुक्‍कड़ से जुड़कर लिख सकते हैं। आप तो बस मार्ग दिखलाते बतलाते चलिए। आपके बेबाक विचार जानकर मन को सुकून मिला। आपके जज्‍बे को प्रणाम।

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  4. खेमेबंद लोगों की गोल-गोल बातों के बीच, सच्चाई जानकार अच्छा लगा. कोई तो है जो सच बोलने से गुरेज़ नहीं करता.

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  5. दिविक जी आपने बिलकुल सही कहा है। मेरा भी यही मत है कि विष्‍णु जी को सच्‍ची श्रद्वाजंलि यही होगी कि हम अपने लेखकीय कर्म को उस तरह करें जैसे उन्‍होंने किया।

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  6. आपने बहुत ठीक लिखा है। विष्णुजी सारी उपेक्षाओं और कटु-आलोचनाओं को वैसे ही छोड़ जाते, जैसे कि उन्होंने जीवनभर छोड़े रखा तो ठीक था। लेकिन अपने शरीर को भी संस्कारों से मुक्त रखकर उन्होंने जो आइना अनीश्वरवादियों और ईश्वरवादियों दोनों को दिखाया है, वह झिल नहीं पा रहा। कोई उनकी रचनाओं को दो कौड़ी की बता्ता रहे, कोई बात नहीं; लेकिन इस एक काम को क्या कहकर धिक्कारेगा? विष्णुजी ने सिद्ध कर दिखाया है कि वे मन-बुद्धि ही नहीं शरीर को भी समाज की वस्तु मानते थे।

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  7. माननीय दिविक रमेश जी। आपने एक कटु सत्‍य को शब्‍द दिए हैं। अब भी हम सब माननीय श्‍याम विमल, राजकुमार सैनी, हरदयाल, सविता चड्ढा जैसे लेखकों से मिलकर विष्‍णु प्रभाकर जी के आदर्शों और विचारों को आत्‍मीय और प्रेरणादायक संस्‍मरणों और अनुभूतियों के जरिए सामने ला सकते हैं। यही सच्‍ची श्रद्धांजलि होगी साहित्‍यकार विष्‍णु प्रभाकर जी को।
    आपका नुक्‍कड़ में स्‍वागत है। आपको नुक्‍कड़ से जुड़ने का आमंत्रण भेजा है और वे सब भी जिनका आपने उल्‍लेख किया है, उनका भी नुक्‍कड़ में स्‍वागत है। वे अपने संस्‍मरण, अपनी बात, अपने बेबाक विचार मुझे ई मेल भी कर सकते हैं और चाहें तो सीधे नुक्‍कड़ से जुड़कर लिख सकते हैं। आप तो बस मार्ग दिखलाते बतलाते चलिए। आपके बेबाक विचार जानकर मन को सुकून मिला।

    मेरा ई मेल पता है avinashvachaspati@gmail.com

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  8. दिविक जी!
    आपने सही बात लिखी है। लेकिन आलोचकों के लेखे न तो कोई कवि या लेखक आज तक महान बना है और न ही कवि या लेखक आलोचकों के मोहताज हैं। यह ज़रूर हो सकता है कि ये गुटबाज़ लेखक जो साहित्य की राजनीति करते हैं किसी को पुरस्कार नहीं देने दें या अपने अपनों को ही पुरस्कार दें, लेकिन सिर्फ़ पुरस्कारों से कोई लेखक महान बना है क्या? विष्णु जी इसलिए महान लेखक हैं कि हिन्दी में हर व्यक्ति उन्हें पढ़्ता है और फिर ताज़िन्दगी याद रखता है, वैसे ही जैसे प्रेमचन्द को । विष्णु जी प्रेमचन्द की ही प्रम्परा के लेखक हैं।
    नागार्जुन जैसे अपनी रचना के ही कारण आज इतने अनिवार्य हो गए हैं कि
    आर०एस०एस० भी अब उन्हें मान्यता देता है। आर०एस०एस० के बौद्धिकों में नागार्जुन की कविताएँ पढ़वाई और सुनवाई जाती हैं। आर०एस०एस० के प्रचारक उनकी कविताओं को गवाकर उनके कैसेट साथ लेकर घूमते हैं। जबकि यही आर०एस०एस० उनके जीवनकाल में उनका विरोधी था और ख़ुद नागार्जुन आर०एस०एस० के करतबों से बेहद रुष्ट थे।
    रचनाकार को मान्यता उसकी रचना से मिलती थी। आलोचकों के देने से नहीं।

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  9. दिविक जी!
    आपने सही बात लिखी है। लेकिन आलोचकों के लेखे न तो कोई कवि या लेखक आज तक महान बना है और न ही कवि या लेखक आलोचकों के मोहताज हैं। यह ज़रूर हो सकता है कि ये गुटबाज़ लेखक जो साहित्य की राजनीति करते हैं किसी को पुरस्कार नहीं देने दें या अपने अपनों को ही पुरस्कार दें, लेकिन सिर्फ़ पुरस्कारों से कोई लेखक महान बना है क्या? विष्णु जी इसलिए महान लेखक हैं कि हिन्दी में हर व्यक्ति उन्हें पढ़्ता है और फिर ताज़िन्दगी याद रखता है, वैसे ही जैसे प्रेमचन्द को । विष्णु जी प्रेमचन्द की ही प्रम्परा के लेखक हैं।
    नागार्जुन जैसे अपनी रचना के ही कारण आज इतने अनिवार्य हो गए हैं कि
    आर०एस०एस० भी अब उन्हें मान्यता देता है। आर०एस०एस० के बौद्धिकों में नागार्जुन की कविताएँ पढ़वाई और सुनवाई जाती हैं। आर०एस०एस० के प्रचारक उनकी कविताओं को गवाकर उनके कैसेट साथ लेकर घूमते हैं। जबकि यही आर०एस०एस० उनके जीवनकाल में उनका विरोधी था और ख़ुद नागार्जुन आर०एस०एस० के करतबों से बेहद रुष्ट थे।
    रचनाकार को मान्यता उसकी रचना से मिलती थी। आलोचकों के देने से नहीं।

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  10. जब तक आप किसी गुट, पार्टी या वाद से जुडे नहीं हो तो कैसे कोई आपको बडा़ साहित्यकार मानेगा। अंत में त्रिलोचन का क्या अंजाम हुआ था!!
    हिंदी के लिए इस महान सेवी ने अपना पद्मभूषण भी लौटाना चाहा था पर किसने इसकी सराहना की थी?? कथनी और करनी का इससे बडा उदाहरण और क्या होगा!!

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  11. साहित्य जगत की कड़वी सच्चाइयों से रूबरू कराती है आपकी यह पोस्ट

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  12. बहुत बहुत स्वागत है आपका दिविक जी ! लिखते रहिए !

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  13. प्रिय दिविक जी,

    विष्णु जी के सन्दर्भ में आपने उचित मुद्दे उठाये हैं. और अखबार के संवाददाताओं की क्या कहें - लानत है उनपर - वे कुछ चेहरे ही पहचानते हैं. विष्णु जी अपनी शर्तों पर लिखते रहे और जिये. कहने के लिए बहुत कुछ है, जिसे मैं उन पर अपने संस्मरण में कहूंगा.

    रूपसिं चन्देल
    www.vaatayan.blogspot.com
    wwwrachanasamay.blogspot.com

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  14. Vishnuji ko itne log yaad kar rahe hain, yeh ek achchhi baat hai. kalam aur karm mein ekakaar hone ka unse behtar udaharan aur koi ho nahin sakta.Yeh sach hai ki unpar Gandhivadi chintan ka gehra prabhav tha,lekin ve Gandhivaad se aage badhkar sochne wale insaan nikle. Dehdaan jaisi baat to Gandhiji bhi na kar sake aur na soch sake. Parlok samvarne ke lobh se to bade bade pragtisheel bhi mukt nahin ho paye hain. Unhonne yeh jo misaal kayam ki hai, baat is par honi chahiye. Yeh bhi hum sub jaante hain ki ve un viral lekhkon mein se the, jinhonne kewal lekhan ke bal par jeewan jiya. Atamsammaan ke saath jiye aur atamsammaan ke saath hi is lok kooch kar gaye. Unhen aksar Awaara Masiha ke lekhak ke roop mein hi yaad kiya ja raha hai. Yeh sach hai ki har lekhak ko kinhin ek ya do kritiyon se pehchaan miltai hai, lekin kewal vahi kritiyan uske mulyankan ka aadhaar nahin ho saktin. Ve ek lekhak aur ek jagrook nagrik ke roop mein pehle se bhi zyada chunauti ban kar khade hain, visheshkar tathakathit pragtisheelon ke samne. Vishnuji Vishnu hone ke bawjood maut se maat kha hi gaye, par kya vakt bhi unko maat de sakega?

    PARTAP SEHGAL SHASHI SEHGAL

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  15. विष्णु प्रभाकर जी ke सम्बन्ध में दिविक जी वेदनाभरी टिप्परी सत्य का उद्घाटन है जिसे काफीहॉउस में मिलते रहने वाले और विष्णु जी को निरंतर पढ़ते रहने वाले साहित्यकार महसूस करते हैं .विष्णु जी जितने vaadesaahityakaar थे उतने ही bare मानव भी थे .आप ने जो लिखा मैं सहमत हूँ .


    सुरेश यादव
    09818032913

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  16. दिविक जी, नमस्कार।
    आज पहली बार आपका ब्लॉग देख रहा हूं।
    विष्णु जी का जाना, हम सब के लिए व्यक्गित शोक है।
    जाकिर अली रजनीश
    ----------
    तस्‍लीम
    साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन

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  17. रमेश दिविक जी की टिप्पणी मेम सच्चाई है। आज हाल ही ऐसा है अपने आलोचकों का! लगभग सभी अपने-अपने यशस्वी मायालोक मेम पड़े हैं। जब पाठक उनको मान्यता दे देता है तब आलोचकों की नींद टूटती है। यह दु:खद है। जैसे वे कोई प्रमाण-पत्र जारी कर रहे हों विश्वविद्यालय का। यह सही है कि लेखक की लेखनी ही उसका पुर्रस्कार है और पहचान भी।-
    अक्षर जब शब्द बनते हैं

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  18. Rameshji,
    Aapaki tippani padhi. Hum aap is baat ke saakshi hain ki kis tarah Vishnuji ko kharij kiya jata raha hai. Tea house ka aandolan bhi bhoola nahin hai. Maine kuchh din pehale Mudrarakshas ki kitab parhi thi - Nemichandra Jain. Us par charcha karte huye maine is baat ka zikra kiya tha. Vo sameeksha maine Rang Prasang ko bheji hui hai. Ummeed karta hoon ki jaldi hi chhapegi. Dukh is baat ka hai ki vo sab likhane ke kuchh din baad hi Vishnuji chal base, lekin kushi is baat ki hai ki unhone apani zindagi ki tareh apana shareer bhi samaj ke liye saparpit kar diya. Kitane lekhakon mein hai itana sarokar?
    Suresh Dhingra

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