शनिवार, 21 सितंबर 2013

थाम कर पृथ्वी की गति

चाहता हूं


रुक जाए गति पृथ्वी की

काल से कहूं सुस्ता ले कहीं



आज मुझे बहु प्यार करना हॆ ज़िन्दगी से।



खोल दूंगा आज मॆं

अपनी उदास खिड़कियां

झाड़ लूंगा तमाम जाले ऒर गर्द

सुखा लूंगा सीलन-भरे परदे।



कहूँगा

सहमी खड़ी हवा से

आओ, आ जाओ आँगन में

मॆं तुम्हें प्यार दूंगा,

जाऊँगा तुम्हारे पीछे-पीछे

खोजने एक अपनी-सी खुशबू

शरद के पत्तों-सा।



रात से कहूँगा

ले आओ ढ़ेर से तारे

सजा दो जंगल मेरे आसपास

मॆं उन्हें आँखों की छुवन दूंगा।



खोल दूंगा आज

समेटी पड़ी धूप को

जाने दूंगा उसे

तितलियों के पंख सँवारने।



थामकर पृथ्वी की गति

रोककर कालचक्र

आज हो जाऊंगा मुक्त।



बहुत प्यार करना हॆ ज़िन्दगी से।







6 टिप्‍पणियां:

  1. आपके ब्लॉग को यहाँ शामिल किया गया है । जरुर पधारें और फोलो कर उत्साह बढ़ाएं । ब्लॉग"दीप"

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  2. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
    कभी यहाँ भी पधारें

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