चाहता हूं
रुक जाए गति पृथ्वी की
काल से कहूं सुस्ता ले कहीं
आज मुझे बहु प्यार करना हॆ ज़िन्दगी से।
खोल दूंगा आज मॆं
अपनी उदास खिड़कियां
झाड़ लूंगा तमाम जाले ऒर गर्द
सुखा लूंगा सीलन-भरे परदे।
कहूँगा
सहमी खड़ी हवा से
आओ, आ जाओ आँगन में
मॆं तुम्हें प्यार दूंगा,
जाऊँगा तुम्हारे पीछे-पीछे
खोजने एक अपनी-सी खुशबू
शरद के पत्तों-सा।
रात से कहूँगा
ले आओ ढ़ेर से तारे
सजा दो जंगल मेरे आसपास
मॆं उन्हें आँखों की छुवन दूंगा।
खोल दूंगा आज
समेटी पड़ी धूप को
जाने दूंगा उसे
तितलियों के पंख सँवारने।
थामकर पृथ्वी की गति
रोककर कालचक्र
आज हो जाऊंगा मुक्त।
बहुत प्यार करना हॆ ज़िन्दगी से।
रुक जाए गति पृथ्वी की
काल से कहूं सुस्ता ले कहीं
आज मुझे बहु प्यार करना हॆ ज़िन्दगी से।
खोल दूंगा आज मॆं
अपनी उदास खिड़कियां
झाड़ लूंगा तमाम जाले ऒर गर्द
सुखा लूंगा सीलन-भरे परदे।
कहूँगा
सहमी खड़ी हवा से
आओ, आ जाओ आँगन में
मॆं तुम्हें प्यार दूंगा,
जाऊँगा तुम्हारे पीछे-पीछे
खोजने एक अपनी-सी खुशबू
शरद के पत्तों-सा।
रात से कहूँगा
ले आओ ढ़ेर से तारे
सजा दो जंगल मेरे आसपास
मॆं उन्हें आँखों की छुवन दूंगा।
खोल दूंगा आज
समेटी पड़ी धूप को
जाने दूंगा उसे
तितलियों के पंख सँवारने।
थामकर पृथ्वी की गति
रोककर कालचक्र
आज हो जाऊंगा मुक्त।
बहुत प्यार करना हॆ ज़िन्दगी से।
हार्दिक धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना:- चलो अवध का धाम
आपके ब्लॉग को यहाँ शामिल किया गया है । जरुर पधारें और फोलो कर उत्साह बढ़ाएं । ब्लॉग"दीप"
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
जवाब देंहटाएंवाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें
हार्दिक धन्यवाद. जरूर
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