जयप्रकाश भारती जी की याद करके "संजय" ऒर प्रकाश मनु ने मुझे तो रुला ही दिया । इतना बड़ा इंसान,
आजीवन बालक, बाल-साहित्य ऒर बाल-साहित्यकारों के प्रति हर घड़ी समर्पित ऎसा साहित्यकार ऒर संपादक हिन्दी क्या मुझे ऒर भाषाओं में भी देखने की तमन्ना हॆ । स्वाभिमान के धनी थे लेकिन अहंकार रत्ती भर भी नहीं । मेरे कोरिया प्रवास के दॊरान तो विशेष रूप से उनके पत्रों ने मुझे अद्भुत बल दिया था, ऒर प्रेरणा भी । हम कृतघ्न होंगे यदि समय रहते उनके दिए का सही सही मूल्यांकन नहीं कर पाते । वे अपनी अभिव्यक्ति में स्पष्ट ऒर मजबूत थे लेकिन आज की कुछ तथाकथित बहुत नामी गरामी विभूतियों की गुट्बाजियों, पूर्वाग्रही संकीर्णताओं,अहसानों से लादने ऒर अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग अलापने की सड़ांधभरी तथा ईर्ष्यालु वृतियों से अलग । इसीलिए कई बार उन्हें ठीक से समझने में कइयों को कठिनाई भी हो जाती थी । भले ही वे कई, बहुत बार अपनी अभिव्यक्तियों में वॆसे भी दिख जाते हों ।सच तो यह हॆ कि उनकी बॊछारें सब के लिए थीं । उनका व्यवहार नकली हो ही नहीं सकता था । दिखावा या बनावटीपन उनमें दुर्लभ ही नहीं असम्भव था ।वे हॆंस क्रिश्चियन ऎंडरसन जॆसे विश्वविख्यात सम्मान से सम्मानित होने वाले अकेले भारतीय लेखक थे जो हिन्दी से थे । यह कम बड़ी बात नहीं हॆ । यह हमारा गर्व भी हॆ ऒर गॊरव भी । ।समकालीन समयों में भारतीय पुरस्कारों/सम्मानों के प्रश्नों के घेरे में आते चले जाने के बावजूद । उनके द्वारा संपादित पुस्तक "हिन्दी के श्रेष्ठ बाल-गीत" जिसमें सुना हॆ प्रकाश मनु जी का भी सहयोग रहा था, आज भी एक चमकती हुई किताब हॆ भले ही बहुतों के गले में वह अटकती भी हो । किसी बड़े साहित्यकार की एक यह भी पहचान होती हॆ कि उसने अपने साहित्यिक क्षेत्र में बिना लागलपेट के कितने सार्थक ऒर अच्छे लेखक दिए याने प्रोत्साहित किए । बाल साहित्य के क्षेत्र में हिन्दी के ’त्रिलोचन थे’ । भारतीजी के समक्ष इस दृष्टि से उनके समय में यदि एक भी हिदी लेखक हो तो उसका नाम मॆं आदर सहित जानना चाहूंगा । कुछ छोटे मुंह बड़ी बात हो गई हो तो क्षमा कर दिया जाऊं, क्योंकि जानबूझकर किसी का भी दिल दुखाना या किसी का भी अपमान करना मुझे नहीं आता ।डॉ. नागेश पाण्डेय ’संजय’ सामने होते तो उन्हें गले ही लगा लेता उस सम्मान के लिए जो उन्होंने जयप्रकाश भारती जी को दिया हॆ । सस्नेह : दिविक रमेश
सम्मान्य भाई साहब , नमस्कार . आपने सही कहा , भारती जी बेजोड़ इन्सान थे . बाल साहित्य के प्रति एकनिष्ठ समर्पण ..और वह भी अपेक्षाओं से कोसों दूर रहते हुए . सच कहूँ तो ....उनके पास जादू की छड़ी ही थी . उनके ज़माने में नंदन केवल बच्चों की ही नहीं , हर उस इन्सान की पत्रिका थी जो बच्चों से जुडा था . बाल साहित्य को स्थापित करने के लिए वे सदैव याद किये जायेंगे .
जवाब देंहटाएंमैं आपके मन की सदाशयता से अभिभूत हूँ . आपको नमन करता हूँ . आभार व्यक्त करता हूँ .
सादर , आपका ही अनुज , नागेश
http://baal-mandir.blogspot.com/
प्रिय दिविक जी, आपका सच्चा और निश्छल भावावेग मेरे भीतर उतर सा गया है। भारती जी आज नहीं हैं और हम इतने निश्छल आवेग और पूरी शिद्दत से उन्हें याद कर रहे हैं, यही उनका बड़प्पन है। अत्यंत स्नेहपूर्वक, प्र.म.
जवाब देंहटाएंJai Prakash Bharti ji baare men jaankar Achchha laga. Sanyog se हिन्दी के श्रेष्ठ बाल-गीत mere pas nahi hai. Koshish karta hoon mil jaaye.
जवाब देंहटाएं............
खुशहाली का विज्ञान!
ये है ब्लॉग का मनी सूत्र!
भाई दिविक जी,
जवाब देंहटाएंआपने मेरे ब्लाग पर बल्लू हाथी का बालघर पढ़कर एक बहुत अच्छी टीप दी थी, जो पढ़ते हुए मन में उतर गई। उस पर दो शब्द मैं भी लिखना चाहता था, पर वह टीप संभवतः किसी तकनीकी कारण से गायब हो गई। कुछ दिन ब्लागस्पाट के लिहाज से गड़बड़ी के थे। शायद उन्हीं दिनों की यह बात है।
पर आज एकाएक आपकी वह टीप जिसमें मेरे लिए अच्छी, बहुत अच्छी सलाह भी है, नजर आ गई। तो सोचा कि इस पर अब दो शब्द लिखते हैं। पर लिखते-लिखते वे दो की बजाय चार शब्द हो गए। कभी फुर्सत हो, तो वहाँ उन पर एक नजर डाल लें। सस्नेह, आपका प्र.म.
भाई दिविक जी,
जवाब देंहटाएंआपने मेरे ब्लाग पर बल्लू हाथी का बालघर पढ़कर एक बहुत अच्छी टीप दी थी, जो पढ़ते हुए मन में उतर गई। उस पर दो शब्द मैं भी लिखना चाहता था, पर वह टीप संभवतः किसी तकनीकी कारण से गायब हो गई। कुछ दिन ब्लागस्पाट के लिहाज से गड़बड़ी के थे। शायद उन्हीं दिनों की यह बात है।
पर आज एकाएक आपकी वह टीप जिसमें मेरे लिए अच्छी, बहुत अच्छी सलाह भी है, नजर आ गई। तो सोचा कि इस पर अब दो शब्द लिखते हैं। पर लिखते-लिखते वे दो की बजाय चार शब्द हो गए। कभी फुर्सत हो, तो वहाँ उन पर एक नजर डाल लें। सस्नेह, आपका प्र.म.
दिविक भाई,
जवाब देंहटाएंआपकी यह टिप्पणी मैंने देखी थी और इस पर दो शब्द कहना भी चाहता था, पर फिर यह एकाएक गायब हो गई। मुझे समझ में ही नहीं आया कि यह हुआ क्या। और इसीलिए इस पर जो लिखना चाहता था, वह भी छूट गया।
पर आज देखता हूँ कि यह टिप्पणी फिर से मौजूद है। मुझे लगता है, पीछे दो-तीन दिन ब्लागस्पाट के कुछ गड़बड़ी के रहे। खुद मेरी लिखी बहुत सी टिप्पणियाँ गायब हुईं। तो वही हाल आपकी टिप्पणी का भी हुआ होगा।
और अब आपकी बात। मैं शुक्रगुजार हूँ कि आपने एक अच्छी, बहुत ही अच्छी सलाह दी। पर दिविक जी, इस मामले में मेरे गुरु रामविलास जी हैं, जिनकी मैं जानता हूँ, आप भी बेहद कद्र करते हैं। उन्होंने मुझे सिखाया था कि प्रकाश मनु,तुम्हारा मन जिसे ठीक कहता हो, वह कहो और करो...और इस मामले में किसी बड़े से बड़े शक्तिशाली शख्स की परवाह मन करो। आपकी राय भी कुछ ऐसी ही है। यकीन मानिए, प्रकाश मनु उनमें से नहीं, जो अपनी लीक छोड़़कर सुविधाओं के रास्ते पर चल पड़े हैं। मुझे मुश्किलें झेलने और अकेले चलने की आदत है और यह आदत अंत तक मेरे साथ रहेगी। मैं आसानी से हार मानने वालों में से नहीं हूँ।
सस्नेह, प्र.म.
हिंदी-भारत के माध्यम से आपके इस ब्लाग पर आना हुआ। कल्पांत का मई अंक आप पर आधारित है यह प्रसन्नता की बात है। जयप्रकाश भारती जी जैसे साहित्यकारों को कौन जानेगा जब तक आप अपनी ढपली आप नहीं बजाएंगे। लेकिन साहित्यिक इतिहास में तो ऐसे मूर्धन्य साहित्यकार स्थान पायेंगे ही।
जवाब देंहटाएंजो भी कारण हो, आप ने अपने ब्लाग के फ़ालोअर नहीं बनाए है, पर यदि यह प्रावधान रहे तो हम जैसे पाठकों को इस ब्लाग पर आने की सुविधा रहेगी :)
जवाब देंहटाएंsir . we are waiting for your new post .
जवाब देंहटाएंकृपया अब नए रूप में मेरा ब्लॉग देखें ऒर बताएं
जवाब देंहटाएंहम तो आपका अनुसरण करेंगे, अब जो आपने प्रावधान कर रखा है :)
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