रविवार, 6 दिसंबर 2009

कविता

समारोह अभी शुरू नहीं हुआ था

दिविक रमॆश

कल अखबार से जाना था
एक मित्र ने
दूसरे को पछाड़ दिया ।

मेंने केदार जी से पूछा
क्या अर्थ हुआ ?

जवाब मंगलेश ने दिया-
आलोचक ने अब राजेश को काट दिया
उदय जी का नाम
वन पर आ गया हॆ ।

ऒर कमल ?
पूछा मॆंने ।

मिलते हॆं
आप चाय लेंगे -
जवाब मिला ।

सवाल मॆंने आलोचक से भी पूछा ।
आलोचक मुस्कराया
ऒर केदार जी की ऒर इशारा कर
चला गया ।

समारोह अभी शुरू नहीं हुआ था ।

नामवर जी
रघूवीर सहाय को उलांघते हुए
त्रिलोचन की ऒर जा रहे थे
केदार जी जहां
पहले ही से बतिया रहे थे
ऒर वहां न के बराबर खड़े दिविक रमेश
ढूंह में बेकार
खुद को खोजने में लगे थे ।

नहीं रहा गया
पुरानी पत्रिका के नये सम्पादक से
कहा-
देखना श्री सहाय अब
हिन्दी के सबसे उपेक्षित कवि को
उसके नाम से पुकारेंगे ।

पता चला कि समारोह शुरू हो गया था ।

सभागार शायद साहित्य अकादमी का था ।

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