आखिरी फूल
दिविक रमेश
कुछ बेहिसाब फूलों के लिए
उसने हाथ फॆलाया
उसके हाथ की रेखाएं
ढ़ेरों ढ़ेर फूलों में तब्दील हो गयीं
इतने फूलों को वह कॆसे बंद करता
कॆसे सड़ने देता मुट्ठी में
उसने उन्हें आकाश में उछाल दिया
चंद ग्वार बच्चे इसी ताक में थे
हंसते हंसते
बीनने लगे फूल धरती से ।
सिर्फ एक बच्चा था
बाहों को कमर पर बांधे
जो घूर रहा था ।
उसकी पोरों में बंद आखिरी फूल को
इत्मीनान से देख रहा था ।
बोला-
’यह फुल मुझे दो न ?’
वह चुप ।
’यह फूल मुझे दो न ?’
बच्चा फिर बोला ।
’क्यों, तुमने धरती से क्यों नहीं बीना ?’
उसने पूछा ।
’दो मुझे फूल’
इस बार
बदल दिया था उसने
स्थान क्रियापद का ।
एक दलित भाव
उसके चेहरे से ख़ारिज हो चुका था।
ख़ुद फूल भी हो उट्टा था उत्सुक
उसके हाथों में आने को ।
क्रमश: ।
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