शनिवार, 26 नवंबर 2011

यह बच्चा

कॊन हॆ पापा यह बच्चा जो
थाली की झूठन हॆ खाता ।
कॊन हॆ पापा यह बच्चा जो
कूड़े में कुछ ढूंढा करता ।

देखो पापा देखो यह तो
नंगे पाँव ही चलता रहता ।
कपड़े भी हॆं फटे- पुराने
मॆले मॆले पहने रहता ।

पापा ज़रा बताना मुझको
क्या यह स्कू्ल नहीं हॆ जाता ।
थोड़ा ज़रा डांटना इसको
नहीं न कुछ भी यह पढ़ पाता ।

पापा क्यों कुछ भी न कहते
इसको इसके मम्मी-पापा ?
पर मेरे तो कितने अच्छे
अच्छे-अच्छे मम्मी-पापा ।

पर पापा क्यों मन में आता
क्यों यह सबका झूठा खाए ?
यह भी पहने अच्छे कपड़े
यह भी रोज़ स्कूल में जाए ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी कविता में बच्चे के माध्यम से बुनियादी प्रश्न उठाये गए हैं | क्या ही अच्छा होता, यदि अंत में पापा की ओर से भी बच्चे की जिज्ञासा शांत कर दी जाती, केवल चार लाइनों में |
    - शून्य आकांक्षी

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  2. "yah baccha" kavita me kavi ka khud baccha hokar apne pita se kisi anya bacche ki sthiti ke bare me puchna, uske bhavishya ke liye chintit hona, in sab baaton ko bade hi saral dhang se aur bahut hi gahrai me jakar kavita me uthaya gaya hai. bahut badhiya kavita hai

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  3. है तो कविता बच्चों के लिए पर बड़ों -बड़ों का दिल चीख पड़ता है इसे पढ़कर ।

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