कॊन हॆ पापा यह बच्चा जो
थाली की झूठन हॆ खाता ।
कॊन हॆ पापा यह बच्चा जो
कूड़े में कुछ ढूंढा करता ।
देखो पापा देखो यह तो
नंगे पाँव ही चलता रहता ।
कपड़े भी हॆं फटे- पुराने
मॆले मॆले पहने रहता ।
पापा ज़रा बताना मुझको
क्या यह स्कू्ल नहीं हॆ जाता ।
थोड़ा ज़रा डांटना इसको
नहीं न कुछ भी यह पढ़ पाता ।
पापा क्यों कुछ भी न कहते
इसको इसके मम्मी-पापा ?
पर मेरे तो कितने अच्छे
अच्छे-अच्छे मम्मी-पापा ।
पर पापा क्यों मन में आता
क्यों यह सबका झूठा खाए ?
यह भी पहने अच्छे कपड़े
यह भी रोज़ स्कूल में जाए ।
आपकी कविता में बच्चे के माध्यम से बुनियादी प्रश्न उठाये गए हैं | क्या ही अच्छा होता, यदि अंत में पापा की ओर से भी बच्चे की जिज्ञासा शांत कर दी जाती, केवल चार लाइनों में |
जवाब देंहटाएं- शून्य आकांक्षी
Dhanyavad
हटाएंहै तो कविता बच्चों के लिए पर बड़ों -बड़ों का दिल चीख पड़ता है इसे पढ़कर ।
जवाब देंहटाएंBahut prerit mahsoos kar raha hoon
हटाएंDhanyavad Manisha ji.
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