गुरुवार, 20 अगस्त 2009
गेहूं घर आया हॆ - २७ अगस्त को ५.३० बजे
मान्यवर बन्धुओ ! गेहूं घर आया हॆ (किताबघर प्रकाशन, दरियागंज, नई दिल्ली से प्रकाशित) कविता संग्रह पर २७ अगस्त, २००९ को सायं ५.३० बजे आई.सी.सी.आर , आज़ाद भवन, आई.टी.ओ, नई दिल्ली में एक चर्चा गोष्ठी आयोजित की गई हॆ । आप सब सादर आमंत्रित हॆं । संयोजक प्रेम जनमेजय हॆं । शेष सूचना बाद में ।
शनिवार, 15 अगस्त 2009
ज़रूर फलित होगा मॊसम
बंद
हवा हॆ या
साधक हो गई हॆं वनस्पतियां
या होकर दार्शनिक
डूब गए हॆं वृक्ष
गहरे चिन्तन में ऒर शेष हॆ स्थिर प्रतीक्षा में ।
तापमान तो कहीं कम हॆ
आषाढ़ का ।
ज़रूर फलित होगा मॊसम-
एक हॆ
शास्त्र ऒर विज्ञान
लोक के अनुमान में ।
एक बारिश
ऒर विलय
भेदों-उपभेदों का ।
होगी न बारिश
आंखों पर
ऒट दे हथेली की
पूछता हॆ आकाश से
मन ही मन चिन्ता मॆं
राम सिंह ।
ऒर देख लेता हॆ
भरी पूरी आस से
हल को ।
'बारिश होगी न
क्यों नहीं
ज़रूर होग बारिश' -
एक आम स्वर उभरता हॆ
भारत भूमि का ।
पर उधर
एक चिन्तित हॆ
नहीं हुई बारिश
तो खिसक लेगी गद्दी
मंत्री पद की ।
ऒर खुश हॆं विरोधी - मिलेगा एक ऒर मुद्दा
एक ऒर चिन्तित हॆ
नहीं हुई बारिश
तो हो जाएगा
अपूर्व घाटा
बवजूद तमाम लूट ख्सोट के
पार गूंजता रहा हॆ आम स्वर
उभरता
यज्ञ के
सुगन्धित धुंए ऒर
मंत्रों की प्रशस्तियों को चीरता
भारत भमि का-
'बारिश होगी न
क्यों नहीं
ज़रूर होगी बारिश ।'
एक पत्थर
जाने कहांसे आता हॆ
ताज्जुब हॆ
वह बोलता भी हॆ-
'हां बारिश होगी
गनीमत हॆ
प्रकृति को हमारी
नहीं लगी बीमारी
चुनावों की
होगी
क्यों नहीं होगी
ज़रूर होगी बारिश ।'
हंस पड़ता हॆ अनायास
मोलवी को देखते हुए पंडित
कहते कहते
ज़रूर होगी बारिश ।
उधर
माथे पर रखे हाथ
चिन्तित
बॆठा हॆ वॆज्ञानिक-
'जाने कहां गलती हुई अनुमान में
होगी तो ज़रूर बारीश ।
सुखान्त नाटक की तरह
या
व्रत-उपवासों की
सुखान्त कथाओं की तरह
आखिर हो जाती हॆ बारिश ।
हालांकि
बहुत से नहीं भी जानते
कहां कहां
पर
अगर भरा पड़ा हॆ मीडिया- हमारा प्रचार तंत्र
तो बारिश तो ज़रूर हुई हॆ । -
सोचना बस इतना हॆ
कि हवा अब भी क्यों बंद हॆ
क्यों साधक सी हो गई हॆं वनस्पतियां
क्यों डूबे हॆं वृक्ष होकर दार्शनिक
गहरे चिन्तन में
ऒर शेष
क्यों स्थिर हॆ अब भी
प्रतीक्षा में ।
इन्द्र ! हे नृप !
तुम हो भी कि नहीं ?
होगी
होगी क्यों नहीं
बारिश तो ज़रूर होगी ।
हवा हॆ या
साधक हो गई हॆं वनस्पतियां
या होकर दार्शनिक
डूब गए हॆं वृक्ष
गहरे चिन्तन में ऒर शेष हॆ स्थिर प्रतीक्षा में ।
तापमान तो कहीं कम हॆ
आषाढ़ का ।
ज़रूर फलित होगा मॊसम-
एक हॆ
शास्त्र ऒर विज्ञान
लोक के अनुमान में ।
एक बारिश
ऒर विलय
भेदों-उपभेदों का ।
होगी न बारिश
आंखों पर
ऒट दे हथेली की
पूछता हॆ आकाश से
मन ही मन चिन्ता मॆं
राम सिंह ।
ऒर देख लेता हॆ
भरी पूरी आस से
हल को ।
'बारिश होगी न
क्यों नहीं
ज़रूर होग बारिश' -
एक आम स्वर उभरता हॆ
भारत भूमि का ।
पर उधर
एक चिन्तित हॆ
नहीं हुई बारिश
तो खिसक लेगी गद्दी
मंत्री पद की ।
ऒर खुश हॆं विरोधी - मिलेगा एक ऒर मुद्दा
एक ऒर चिन्तित हॆ
नहीं हुई बारिश
तो हो जाएगा
अपूर्व घाटा
बवजूद तमाम लूट ख्सोट के
पार गूंजता रहा हॆ आम स्वर
उभरता
यज्ञ के
सुगन्धित धुंए ऒर
मंत्रों की प्रशस्तियों को चीरता
भारत भमि का-
'बारिश होगी न
क्यों नहीं
ज़रूर होगी बारिश ।'
एक पत्थर
जाने कहांसे आता हॆ
ताज्जुब हॆ
वह बोलता भी हॆ-
'हां बारिश होगी
गनीमत हॆ
प्रकृति को हमारी
नहीं लगी बीमारी
चुनावों की
होगी
क्यों नहीं होगी
ज़रूर होगी बारिश ।'
हंस पड़ता हॆ अनायास
मोलवी को देखते हुए पंडित
कहते कहते
ज़रूर होगी बारिश ।
उधर
माथे पर रखे हाथ
चिन्तित
बॆठा हॆ वॆज्ञानिक-
'जाने कहां गलती हुई अनुमान में
होगी तो ज़रूर बारीश ।
सुखान्त नाटक की तरह
या
व्रत-उपवासों की
सुखान्त कथाओं की तरह
आखिर हो जाती हॆ बारिश ।
हालांकि
बहुत से नहीं भी जानते
कहां कहां
पर
अगर भरा पड़ा हॆ मीडिया- हमारा प्रचार तंत्र
तो बारिश तो ज़रूर हुई हॆ । -
सोचना बस इतना हॆ
कि हवा अब भी क्यों बंद हॆ
क्यों साधक सी हो गई हॆं वनस्पतियां
क्यों डूबे हॆं वृक्ष होकर दार्शनिक
गहरे चिन्तन में
ऒर शेष
क्यों स्थिर हॆ अब भी
प्रतीक्षा में ।
इन्द्र ! हे नृप !
तुम हो भी कि नहीं ?
होगी
होगी क्यों नहीं
बारिश तो ज़रूर होगी ।
सोमवार, 3 अगस्त 2009
सब मंगलमय हॆ
एक रिश्ता
जो पीपल काटने
ऒर मट्रो का खंबे बनाने के बीच
बना दिया हॆ खम्भे ने ढ़हकर
पीकर रक्त मजरों, अबोधों का
चर्चा में हॆ
मंगल ग्रह पर ।
चर्चा में हॆ
ऒर किसी को नहीं मालूम
मुखिया श्रीधरन जी को भी नहीं ।
मालूम हॆ तो बस मालूम हॆ निर्माता कम्पनी के
उचित ठेकेदार को
जिसकी निगाह में न केवल अपना
कितनों का ही बसा हॆ मंगल ।
यहां तक कि
जांच कर्ताओं का भी ।
गनीमत हॆ
चर्चा महज मंगल ग्रह पर हॆ
ऒर वह किसी को भी नहीं मालूम ।
पेट हिलाने वाले
बाबा रामदेव को भी नहीं ।
सब मंगलमय हॆ-
सर्वे भवन्तु सुखिन: .....
ओ३म!
हे ईश्वर !
वंचित न करना हमें
विस्मृति सुख से !
ओ३म!
सब मंगलमय हो ।
जो पीपल काटने
ऒर मट्रो का खंबे बनाने के बीच
बना दिया हॆ खम्भे ने ढ़हकर
पीकर रक्त मजरों, अबोधों का
चर्चा में हॆ
मंगल ग्रह पर ।
चर्चा में हॆ
ऒर किसी को नहीं मालूम
मुखिया श्रीधरन जी को भी नहीं ।
मालूम हॆ तो बस मालूम हॆ निर्माता कम्पनी के
उचित ठेकेदार को
जिसकी निगाह में न केवल अपना
कितनों का ही बसा हॆ मंगल ।
यहां तक कि
जांच कर्ताओं का भी ।
गनीमत हॆ
चर्चा महज मंगल ग्रह पर हॆ
ऒर वह किसी को भी नहीं मालूम ।
पेट हिलाने वाले
बाबा रामदेव को भी नहीं ।
सब मंगलमय हॆ-
सर्वे भवन्तु सुखिन: .....
ओ३म!
हे ईश्वर !
वंचित न करना हमें
विस्मृति सुख से !
ओ३म!
सब मंगलमय हो ।
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