न सही अदृश्य या निराकार ही
तब भी करूंगा समर्पित
समस्त को
निज प्रणाम यहीं से ।
भले ही कह लें मुझे नास्तिक
पर करना हॆ मुझे अनुकरण वृक्ष का
होकर फलीभूत यहीं से
करना हॆ समर्पित
सबकुछ ।
जब भिगो सकते हॆं मेघ
वहीं से
जब महका सकते हॆं फूल
वहीं से
तो क्यों नहीं मॆं
यहीं से ।
चाहता हूं फले फूले लोक गीत
लोक में रहकर, यहीं पर ।
फले फूले जंगल, जंगल में
यहीं पर ।
चाहता हूं
मिलता रहे आशीर्वाद यहीं पर
समस्त का
जो न अदृश्य हॆ न निराकार ही ।
ऒर करता रहूं समर्पित
निज प्रणाम यहीं से
एक ऎसा प्रणाम
जो न डर हॆ न दीनता
न धर्म हॆ न हीनता ।
बहुत सुन्दर ...अद्भुत समर्पण
जवाब देंहटाएंचाहता हूं फले फूले लोक गीत
जवाब देंहटाएंलोक में रहकर, यहीं पर ।
फले फूले जंगल, जंगल में
यहीं पर ।
बहुत सुन्दर इच्छा. आभार.
सुन्दर!
जवाब देंहटाएंitni khoobsoorat baaten aastikon ko samajh mein nahin aati. ham nastik hi bhale.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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